दिल्ली: अप्रैल माह में ईडी ने मेघालय और असम में कई स्थानों पर छापेमारी की थी। ईडी की जांच में पता चला कि मेघालय और असम के लोगों का एक सिंडिकेट यह सुनिश्चित करता था कि अवैध कोयले से भरे ट्रक मेघालय की सीमाओं को पार कर बिना किसी रोक-टोक और जांच के असम में प्रवेश कर जाएं। वहां ऐसे दस्तावेज तैयार किए जाते थे, जिनसे कोयला वैध रूप से खनन किया हुआ प्रतीत हो। जांच में यह भी सामने आया कि यह सिंडिकेट खदान मालिकों से कमीशन, संरक्षण के नाम पर प्रति ट्रक 1.27 लाख से 1.5 लाख रुपये तक वसूलता था। ईडी ने तलाशी के दौरान 1.58 करोड़ रुपये की नकदी, कई डिजिटल उपकरण और दो वाहन जब्त किए थे।
कांग्रेस के नवनिर्वाचित असम के प्रदेश अध्यक्ष गौरव गोगई जो कि लोकसभा में उपनेता विपक्ष भी हैं का कहना है कि सरकारों के संरक्षण में उत्तर-पूर्व क्षेत्र कोयला खनन और नशे के अवैध कारोबारों का गढ़ बन चुका है । उपरोक्त मामले में कोई गिरफ्तारी और ठोस जांच नहीं होने पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए उन्होंने सवाल उठाया कि क्या ईडी की छापेमारी केवल जबरन वसूली का एक साधन थी। एसआईटी की जांच में भी यह पता चला है कि असम में करीब 245 अवैध रैट-होल खदाने संचालित हो रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर किसकी छत्रछाया में ये सब चल रहा था? क्या ईडी की छापेमारी सिर्फ डेढ़ करोड़ की नकदी जब्त करने तक ही सीमित थी? ईडी की कार्रवाई के बाद राज्य सरकार ने इस मामले में कोई जांच क्यों नहीं की और केंद्र सरकार ने अब तक कोई कदम क्यों नहीं उठाया?
उन्होंने उत्तर-पूर्वी राज्यों में नशे की बढ़ती लत की समस्या पर भी तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता जताई। कहा कि म्यांमार से बड़ी मात्रा में ड्रग्स की तस्करी की जा रही है, जिससे क्षेत्र के युवा तेजी से नशे की गिरफ्त में आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि मिजोरम के आबकारी और नारकोटिक्स मंत्री स्वयं स्वीकार कर चुके हैं कि राज्य में नशीले पदार्थों की तस्करी में वृद्धि हुई है। वहीं मेघालय के एक राज्य मंत्री ने कहा है कि राज्य में नशे के आदी लोगों की संख्या लगभग तीन लाख है, जो कि कुल जनसंख्या का दस प्रतिशत है। यह स्थिति नशीली दवाओं के दुरुपयोग में खतरनाक वृद्धि को दर्शाती है। इस समस्या का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि नशीली दवाओं का सेवन करने वालों में अधिकांश की आयु 15-29 वर्ष के बीच है।
प्रदेश अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी पर आपत्ति जताते हुए कहा कि जब पूर्वोत्तर के लोग देश के विभिन्न हिस्सों में जाते हैं, तो अक्सर उन्हें उनके चेहरे की बनावट के लिए चिढ़ाया जाता है। इस प्रकार की भाषा न केवल भेदभाव को बढ़ावा देती है, बल्कि पूर्वोत्तर के लोगों के प्रति उत्पीड़न और उपेक्षा के व्यवहार को भी प्रोत्साहित करती है।