सत्ता के इस महाभोज की अग्नि आखिर धीमी क्यों हो गई है ? ना पहले वाला उत्साह राजनीतिक दलों में दिखाई दे रहा है ऑर ना ही मतदाता घर से निकलकर वोट डालने के लिए तैयार है I पहले दो चरण याने कि 190 सीटों पर मतदान गिरा है लेकिन मतदान की दर पिछली दफा से कम यानि की 62 फीसदी रही है I जो कि मौजूदा परिवेश के मद्देनजर विचारणीय है I
मतदाता का उदासीन रवैये के पीछे आखिर माजरा क्या है ? कहीं न कही उसने अपने जेहन में बैठा लिया है कि सत्ता में जो भी आए हालत बदलने वाले नहीं I विकल्प की संभावना नहीं है इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता I
ऐसा नहीं है कि मामला बिलकुल ठंडा पड़ गया है I चरणानुसार राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव प्रचार के लिए महा रैलियों के आयोजन के समाचार भी कालांतर मिल ही रहे हैं I व्यक्तिगत सम्पर्क का अभाव साफ झलकता है I सियासत में बदलाव के आसार ना के बराबर हैं I
कड़वा करेला खाया है तो मुँह का स्वाद तो बिगड़ेगा ही साथ ही खून भी साफ होगा I कहीं कहीं छाले पड़ने की सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता ।
मौजूदा परिस्थितियों के मद्देनजर मतदाताओं के लिये कहीं ना कहीं जरुरी है अपने अधिकारों का इस्तेमाल....