काशी विश्वनाथ परिसर से सटी हुई ज्ञान व्यापी मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद वजु घर परिसर में शिवलिंग के पाये जाने पर हिन्दू पक्ष के सामने मुस्लिम पक्ष भी मैदान में उतरा I जहाँ हिन्दू पक्ष का मानना है कि मस्जिद परिसर में स्थित उजु घर में शिवलिंग है वहीं मुस्लिम पक्ष की दलील है कि वजु घर में जिसे शिवलिंग बताया जा रहा है वह शिवलिंग नहीं फाउंटेन है I इस दलील को लेकर मुस्लिम पक्ष सर्वोच्च न्यायालय में पहुँच गया यह बात ऑर है कि कोर्ट ने इस बाबत नोटिस भी जारी कर दिया है कि वाराणसी के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट द्वारा वजु घर जहां पर शिवलिंग मिला है सुरक्षा के घेरे में लिया जाना चाहिए I मस्जिद में नमाज पढ़े जाने पर पाबंदी नहीं है लेकिन वजु की व्यवस्था किसी अन्य स्थान पर की जाए I साथ ही निचली अदालत में इस बाबत कार्यवाही के सुझाव दिये हैं I कोर्ट द्वारा नियुक्त एडवोकेट कमीशनर अजय मिश्रा एवं उनकी टीम द्वारा किए गए सर्वेक्षण से भी शिवलिंग मिलने की पुष्टि होती है यह बात ऑर कि रिपोर्ट दाखिल किये जाने से पूर्व ही रिपोर्ट के तथ्यों को सार्वजनिक करने अभियोग में एडवोकेट मिश्रा को हटकर उनकी जगह एडवोकेट विशाल सिंह को एडवोकेट कमीशनर नियुक्त किया गया है ऑर एडवोकेट मिश्रा को रिपोर्ट बनाने में उनके सहयोगी के रूप में कार्य करना होगा I मुस्लिम पक्ष की दलील जो भी हो हिन्दू वास्तु शास्त्र के अनुसार नंदी जी का मुह शिवलिंग की तरफ होता है I अब गौर फरमाते है काशी विश्वनाथ परिसरपर तो यहाँ नंदी जी का मुख शिवलिंग की बजाये मस्जिद की तरफ है ऑर दीवार के पीछे वजु घर है जहां पर कथित तौर पर शिवलिंग होने के प्रमाण हैं I
हिंदू पक्ष का कहना है कि 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने यहां काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई थी. हालांकि, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां मंदिर नहीं था और शुरुआत से ही मस्जिद बनी थी I यदि इतिहास के पन्नों एवं उपलब्ध जानकारियों को खंगाला जाये तो प्रमाण शिवलिंग के ही मिलते हैं I मुगलकालीन इतिहासकारों के अनुसार काशी के मुख्य शिवालय को ध्वस्त करने के बाद बेशकीमती पत्थर जैसे दिखाई देने वाले शिवलिंग को आक्रांता अपने साथ ले जाना चाहते थे I तमाम कोशिशों के बाद भी वह शिवलिंग को अपने स्थान से नहीं हिला पाये आखिर उन्हे शिवलिंग छोड़ कर जाना पड़ा I बीएचयू के इतिहास विभाग के प्रो. प्रवेश भारद्वाज के अनुसार कुतुबुद्दीन ऐबक, रजिया सुल्तान, सिंकदर लोदी और औरंगजेब ने काशी के देवालयों को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया। सभी ने अपने-अपने काल में काशी के प्रधान शिवालय पर भी आक्रमण किए। मंदिर का खजाना लूटा लेकिन लाख कोशिश के बाद भी शिवलिंग को अपने साथ नहीं ले जा सके। अंग्रेज दंडाधिकारी वॉटसन द्वारा 30 दिसम्बर 1810 को ‘वाईस प्रेसिडेंट ऑफ कॉउन्सिल’ में ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को सौपे जाने की गुजारिश की गई । उनके अनुसार परिसर में हर तरफ हिंदुओं के देवी-देवताओं के मंदिरों का होना एवं मंदिरों के बीच में मस्जिद का होना इस बात का प्रमाण है कि वह स्थान भी हिंदुओं है। ब्रिटिश शासन ने उनके द्वारा की गई गुजारिश को खारिज कर दिया । तब से ज्ञानवापी परिसर को लेकर दोनों पक्ष अपने-अपने दावों पर अड़े हैं। संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग(बीएचयू) द्वारा किए गए शोध के अनुसार 1809 में ज्ञानवापी को लेकर हिंदू-मुस्लिम के मध्य संघर्ष हुआ ऑर ज्ञान व्यापी मस्जिद पर हिंदुओं का कब्जा हो गया I 11 अगस्त 1936 को स्टेट कॉउंसिल, अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी तथा सुन्नी सेंट्रल वफ्फ बोर्ड ने याचिका दायर की। 1937 में केस को खारिज हो गया। पांच साल तक चला मामला 1942 में हाईकोर्ट में गया। तब से विवाद चला आ रहा है I
1991 में वाराणसी के पुजारियों के एक समूह ने अदालत में याचिका दायर कर ज्ञान व्यापी मंदिर परिसर में पूजा की अनुमति मांगी थी I उच्च न्यायालय ने 2019 में याचिकाकर्ताओं की सर्वे की मांग जाने पर रोक लगाने का आदेश दिया I विवाद तब गहराया जब पाँच हिन्दू महिलाओं ने मस्जिद परिसर के भीतर शृंगार गौरी एवं अन्य मूर्तियों की नियमित पूजा करने की मांग की I फिलहाल चौथे नवरात्रे के दिन साल में एक बार पूजा करने की इजाजत है I दोनों ही पक्षों के दावे अदालत में हैं एवं मामला कोर्ट में विचारधीन है ।