हाल ही में हो रहे पश्चिम बंगाल में पंचायती चुनावों के दौरान हिंसक वारदातों में मरने वालों का आंकड़ा 18 पार I मतदान के दौरान कूच बिहार के बूथ नंबर 6/84 में गुस्साये मतदाताओं द्वारा कथित रूप से मतपेटी जलाये जाने के समाचार मिले हैं I डायमंड हरबर, साऊथ 24 परगना आदि इलाकों से मतपेटी लूटे जाने के समाचार भी मिले हैं I नंदी ग्राम से बीजेपी के एमएलऐ सुवेन्दु द्वारा टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हिंसक हमले किये जाने के आरोप भी लगाए हैं I इन सबके बीच वहाँ का प्रशासन मौन है I
पश्चिम बंगाल की राजनीति को यूँ ही रक्त रंजित राजनीति नहीं कहा जाता, 70 के दशक से लेकर अब तक सियासतें बदलती रही लेकिन हिंसा का दौर बदस्तूर है I यदि गृह मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर फरमाया जाये तो 2018 के पंचायती चुनावों के दौरान पश्चिम बंगाल में 23 राजनीतिक हत्यायेँ हुई I एनसीअरबी द्वारा जारी अकड़ों के अनुसार 2010 से 2019 के मध्य यह आंकड़ा 161 पर पहुच गया I 1971 में सिद्धार्थ शंकर रे के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद से राजनीतिक हत्याओं का जो दौर शुरू हुआ उसने पहले की तमाम हिंसा को पीछे छोड़ दिया I
70 के दशक में भी वोटरों को आतंकित कर सीपीएम की पकड़ मजबूत करने के लिए यहाँ पर हिंसा होती रही है 1998 में ममता बनर्जी की ओर से टीएमसी के गठन के बाद वर्चस्व की लड़ाई में हिंसा का नया दौर शुरू हुआ ।1988 पंचायत चुनावों के दौरान कई इलाकों में भारी हिंसा हुई। 2021 में विधानसभा चुनावों के दौरान हुई हिंसक वरदातों के दौरान हुई बीजेपी कार्यकर्ताओं की मौत की जांच उच्च न्यायालय ने सीबीआई को सौंपी है I 50 से भी अधिक मामलों में चार्ज शीट अदालत में पेश कर दी है I
यदि मौजूदा चुनावों की बात की जाये तो 73887 सीटों पर हो रहे मतदान में 2.06 लाख उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं I इन चुनावों में टीएमसी, बीजेपी ,सीपीआई एवं कांग्रेस के बीच मल्लयुद्ध है I दोपहर एक बजे तक मतदान की दर 36.36 फीसदी थी I रक्त रंजित राजनीति के परिणामों का खुलासा तो समय आने पर हो ही जायेगा.......