तमाम कवायदों एवं जद्दोजहद के बावजूद भी एक बार फिर लहराया पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का परचम । बंगाली असमिता का फार्मूला आखिर काम कर ही गया । हालांकि देश की सबसे बड़ी पाटी भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सारी शक्ति पश्चिम बंगाल के विधान-सभा चुनावों में झोंक दी थी । केंद्र की सियासत का शायद ही कोई हिस्सा होगा जो चुनाव प्रचार के लिये पश्चिम बंगाल में न डटा रहा हो । चाहें वह मंत्री हो या फिर प्रवक्ता ।
292 विधान-सभा सींटों में से 213 तृणमूल कांग्रेस को एवं 77 बीजेपी को मिली । कांग्रेस एवं वामपंथी दलों की स्थिति शून्य रही । चुनाव में अच्च्छे परिणाम मिलने के बावजूद भी नहीं ला सकी भारतीय जनता पार्टी पश्चिम बंगाल की राजनीति में बदलाव । पिछले चुनावों से पार्टी की प्रफारमेंस खासा बदलाव आया है । 10 से 40 प्रतिशत पहुँच गई है ।
कोविड 19 संक्रमण की दूसरी लहर के मध्य-नजर चुनाव आयोग के सख्त दिशा-निर्देशों के बावजूद भी है नियमों को ताक में रखकर कोलकोता एवं पश्चिम बंगाल के अन्य शहरों में जमवाड़ा लगाकर जश्न मनाये जाने के समाचार मिले हैं ।
मौजूदा चुनाव परिणामों के मध्य-नजर पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनना तय है । कहीं न कहीं भारी पड़ा भारतीय जनता पार्टी पर सीएए एवं एनआरसी का मुद्दा....