मोटा भाई के शंखनाद से कहीं न कहीं अंदर तक हिल गई है बंगाल की दीदी एवं तृणमूल कांगेस । और हिले भी क्यों नहीं बंगाल में विधान-सभा के लिये आठ चरण में मतदान जो संभावित हैं । मतदान की प्रक्रिया 27 मार्च से शुरू होकर 29 अप्रेल को समाप्त हो जायेगी । मतगणना की तारीख 2 मई मुकरर है ।
294 सीटों वाली पश्चिम बंगाल की इस विधान-सभा की राजनीति के पेच कुछ अलहदा हैं । हिंसा एवं टकराव की बिसात पर बिछी है यहाँ की राजनीति । चुनाव हो और हिंसा न हो ऐसा हो ही नहीं सकता । वरिष्ठ पत्रकार रास बिहारी ने अपनी पुस्तक "रक्तरंजित बंगाल-लोकसभा में भी चुनाव 2019" में 2011 से लेकर 2019 तक विभिन्न राजनीतिक पड़ावों हिंसा,संघर्ष एवं धांधली का विस्तार से जिकर किया है ।
यहाँ फिलहाल तृणमूल कांग्रेस की सरकार है एवं आगामी चुनावों में भरतीय जनता पार्टी एवं तृणमूल कांग्रेस में काँटे की टक्कर है । इस बार के चुनावी मुद्दों में हिंदुत्व के साथ सीएए एनआरसी सहित स्थाननीय मामलों का भी समावेश रहेगा । फिलहाल रैली एवं जनसभाओं के माध्यम से दावेदारी साबित करने का दौर है ।
आंतरिक कलह का कहीं न कहीं खमियाजा भुगतना पड़ सकता है बंगाल की दीदी मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी एवं उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को । दीदी के भतीजे अभिषेक बेनर्जी का परिवार ईस्टरन कोलफील्ड घोटाले के मामले में मीडिया की सुर्खियों में बना हुआ है । अभिषेक बेनर्जी पार्टी के वरिष्ठ नेता होने के साथ लोक-सभा सदस्य भी हैं ।
मौजूदा राजनीतिक परिवेश के मध्य-नजर नहीं होगा आसान किसी भी एक के लिये अपना वर्चस्व साबित करना । राजनीति के चाणक्य द्वारा रचित व्यूह रचना के परिणामों का खुलासा तो समय आने पर हो ही जायेगा...