हाथरस काँड से जन-मानस का स्तब्ध होना लाजमी है । इंसाफ के लिये कहीं न कहीं आवाज उठाया जाना भी जायज है । इन सबके के बीच कहीं न कहीं विचारणीय है इंसाफ के नाम पर सिक रही राजनैतिक रोटियाँ । हालाँकि मौजूदा सरकार ने डीसी एवं पुलिस अधिक्षक सहित क्षेत्र के संबंधित अधिकारियों को निलंबित कर दिया है और मामले की गंभीरता का संज्ञान लेते हुए सीबीआई द्वारा जाँच की पेशकश की है ।
14 सितंबर को हाथरस के एक गाँव की खेतों से चारा लेने जा रही 19 साल की लड़की का गाँव के कुछ लड़कों ने बलात्कार किया । बलात्कारियों के साथ मुकाबले के दौरान पीड़िता की रीढ़ की हड्डी टूट गई । जीवन मौत के संघर्ष बीच 15 दिन के बाद दिल्ली के एक अस्पताल में पीड़िता की मौत हो गई । ओटोप्सी रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता की मौत कुंद बल घात से रीढ़ की हड्डी का टूटना है न कि बल-अजमाइश । पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में गुप्ताँगों में पुराने जख्मों का तो जिकर है लेकिन बलात्कार का जिकर है । इस प्रकरण में गाँव के चार युवकों को नामजद किया गया है संदीप,रामू,लवकुश एवं रवि ।
परिवार की वक्त के अनुसार बदलती बयानबाजी एवं राजनैतिक दलों के बढ़ते घेराव से मौजूदा सरकार एवं स्थाननीय प्रशासन की सरदर्दी बढ़ गई है । आये दिन हो रहे धरने-प्रदर्शन एवं चक्का जाम से फिलहाल हाथरस की कानून-व्यवस्था चरमराई हुई है । यदि गौर फरमाया जाये तो केस के पेच उलझे हुए हैं । पोस्टमार्टम की एवं आटोप्सी रिपोर्ट मे बलात्कार की पुष्टि ना होने के बावजूद बलात्कार होने का राजनीतिक दबाव और पुलिस द्वारा बिना परिजन की रजामंदी लिये चुपचाप शव को जलाया जाना कहीं न कहीं मामले की सुई घुमा देता है ।
जहाँ तक इंसाफ का सवाल है वो पीड़ित पक्ष को मिलना ही चाहिए विचारणीय है तो बस इंसाफ दिये जाने के नाम पर जाति एवं तुष्टिकरण की राजनीति....