पूर्ण बंदी के दौरान देश भर में सुरक्षा इंतेजामात के मध्य-नजर मुंबई से मात्र 90 किलोमीटर पालघर में अचानक 200 लोगों का जमवाड़ा वो भी पुलिस स्टेशन के सामने । दो साधुओं को पुलिस ठाने से बाहर लाया जाता है और भीड़ पत्थर, डंडों एवं लाठियों से पीटकर- पीटकर साघुओं को मार डालती है । यहाँ तक की उनके ड्राइवर को भी नहीं बख्शा जाता ।
16 अप्रेल को घटे इस कांड का सोशल मीडिया पर मामला वायरल होने पर राज्य सरकार 48 घंटे बाद संज्ञान लेती है । उससे पहले इसे चोरी की अफवाह के तहत हत्या माना जा रहा था । मृतक साधुओं के संबंध जूना अखाड़े से बताये जा रहे हैं । वे कांदीवली से सिलवासा अपने गुरू के अंतिम संस्कार में शामिल होने जा रहे थे ।
संत कल्पवृक्ष गिरी 70 साल के एवं सुशील गिरी 35 साल के थे । हालांकि प्रदेश के मुख्य-मंत्री उद्धव ठाकरे ने इसे अफवाह के कारण हत्या मानते हुए राजनीति का जामा पहनाने से बाज आने की तकीद की है । अब तक 110 लोगों को गिरफतार किया जा चुका है ।
मामले की जाँच महाराष्ट्र केडर के दो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी कर रहे हैं । देश के संत समाज में मामले को लेकर अक्रोश है । घटनाक्रम का विश्लेषण करते हुए मौका ए वारदात में पुलिस एवं लोकल प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाते मामले की सीबीआई से जाँच कराने की माँग की है ।
जहाँ संतों की हत्या को लेकर पूरे देश में सनसनी है वहीं समय-समय पर असहिष्णुता की मुखलफत करने वाला समाज का एक बुद्धिजीवी वर्ग जिन्में नेता,अभिनेता और चंद पत्रकार भी शामिल हैं खामोश हैं । यह वही वर्ग है जो असहिष्णुता को लेकर राष्ट्रीय संमान लौटाने की बात करता है ।
पालघर में संतों की हत्या का खुलासा तो समय के साथ हो ही जायेगा । गुनाहगारों को सजा भी मिलेगी विचारणीय है तो बस फिरकापरस्ती की राजनीति....