क्या वास्तव में भारत का मुसलमान असुरक्षित है या फिर नागरिक्ता संशोधन कानून को दिया जा रहा है राजनीतिक मोड़ । छात्रों की बुनियादि माँगों को लेकर छेड़े गये आंदोलन यकायक तब्दील हो जाते हैं नागरिक्ता संशोधन कानून के विरोध में । पत्थरबाजी,तोड़-फोड़ और आगजनी के माध्यम से निशाना बनाया जाता है सार्वजनिक एवं निजी संपत्ति को । अनियंत्रित भीड़ पर काबू पाने के लिये लाठी-चार्ज होते ही देश के राजनीतिक हल्कों में हलचल मच जाती है ।
छात्र आंदोलन को सही करार देते हुए होने लगती है बलवे के नियंत्रण में पुलिस की भूमिका की समीक्षा । साथ ही होता है नागरिक्ता संशोधन कानून का पोस्टमार्टम । राजनीतिक स्वार्थ के लिये तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश कर भ्रम फैलाया जाता है कि यदि यह कानून लागू होता है तो मुसलमानों को चीन की तरह डिटेंशन सेंटर में रखा जायेगा । देश उबल रहा है और विपक्ष याने कि कांग्रेस और उसके सहयोगी वामपंथी दलों की मंशा मुसलमानों को खैफजदा कर आंदोलन और हिंसा के माध्यम से सरकार पर दबाव बनरकर इस कानून को वापिस लेना है ।
यदि देखा जाये तो यदि यह कानून लागू होता है तो इससे इस देश के नागरिक चाहें वो किसी भी धर्म सांप्रदाय की नागरिक्ता पर कोई असर नहीं पड़ेगा । इस कानून में बंगलादेश,पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आये मुसलमानों को अलग रखा गया है । याने कि इन देशों से आये शरणार्थियों को नागरिक्ता नहीं मिल पायेगी । कहीं ना कहीं हो पायेगा नियंत्रण इन देशों के रास्ते आने वाले घुसपेथियों पर । कहीं ना कहीं आतंकी गतिविधियों पर नियंत्रण के लिये यह जरूरी भी है ।
राजनीतिक स्वार्थ के लिये नागरिक्ता संशोधन कानून को लेकर फैलाये भ्रम के कारण देश भर में फैली अशांति के मध्यनजर बीजेपी ने फैसला लिया है कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक नागरिक्ता संशोधन कानून पर दस दिनों का जनचेतना अभियान चलाने का । इस दौरान 3 करोड़ नागरिकों से व्यक्तिगत संपर्क किये जाने का लक्ष्य है । प्रधान-मंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने भी दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित स्वागत रैली मे देश के नागरिकों से भ्रमजाल से निकलकर राष्ट्र निर्माण में सहयोग की अपील की ।
नागरिक्ता संशोधन कानून से मुस्लिम समुदाय भले ही खौफजदा ना हो ;चमकाई जा सकती है वोट बेंक के लिये विरोध की राजनीति...