कर्नाटक में है फिलहाल राजनीतिक उठल-पुठल का दौर । ऐन विधान-सभा चुनाव से पहले मुख्य-मंत्री सिद्धारमइया ने दी सार्वजनिक तौर पर लिंगायत को अलग धर्म को मान्यता । जहाँ कांग्रेस ने फेंका लिंगायत का ट्रंप वहीं भारतीय जनता पार्टी भी नहीं हैं पीछे नहीं चाहती लेना कोई भी रिस्क । कर्नाटका में आगामी 12 मई को चुनाव संभावित है ।
फिलहाल दोनों ही दलों का भविष्य दाव पर है और फैसला है कर्नाटक के मतदाताओं के हाथ । यहाँ कां्रग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच कांटे की टक्कर है । मौजूदा हालातों के मध्य-नजर यहाँ के राजनीतिक पेच कुछ टेड़े जान पड़ते हैं । 2013 के चुनावों में बागी हुए यदुरप्पा के तेवर फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के लिये नम्र हुए हैं ।
2013 में कांग्रेस की सबसे बड़ी उपलब्धि यदुरप्पा की भारतीय जनता पार्टी के प्रति नारजगी और पार्टी छोड़कर नई पार्टी के.जे.पी. का गठन रहा जिसके चलते भारतीय जनता पार्टी के वोट कटे और सरकार बनी कांग्रेस की । आगामी चुनावों में जीत की स्थिति में भारतीय जनता पार्टी की तरफ से यदुरप्पा मुख्य-मंत्री रहेंगे ।
इस बार का चुनावी आकर्षण है मांडया । यहाँ के प्रभावशाली नेता कृष्णा ने अपनी पाटी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन की है । अब देखना यह है कि क्या पार्टी छोड़ने के बाद भी उनका प्रभाव अपने मतदाताओं पर बरकरार रहेगा । खुलासा तो समय के साथ हो ही जायेगा । मौजूदा सरकार की अपने कार्यकर्ताओं पर पकड़ धीली हुई है ।
यदि देखा जाये तो मौजूदा सरकार के शासन-काल में कर्नाटक का कुछ खास विकास नहीं हुआ है । इस दौरान 3781 किसानों ने आत्म-हत्या की । स्थाननीय नेताओं का मानना है कि बेंगलोर जो देश ही नहीं विदेश में भी आई.टी. हब के रूप में जाना जाता है से मिलने वाले रेवेन्यु का एक हिस्सा कर्नाटक के विकास के लिये मिलना चाहिये था नहीं मिल रहा है । कावेरी विवाद को सुलझााने में राज्य और केंद्र सरकार की भूमिका ।
अमित भाई शाह द्वारा की गई व्युह रचना के मध्य भारतीय जनता पार्टी पर सांप्रदायिक्ता का अभियोग लगाने वाली कांग्रेस द्वारा वोट की राजनीति के लिये लिंगायत की गई मुखालफत का परिणाम जो भी हो विचारणीय है तो बस समय वोट की खातिर बदलती राजनीतिक दलों की विचारधारा ....